बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 गृहविज्ञान बीए सेमेस्टर-3 गृहविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 गृहविज्ञान
प्रश्न- बच्चों के भय के क्या कारण हैं? भय के निवारण एवं नियन्त्रण के उपाय लिखिए।
उत्तर-
बच्चों के भय के कारण
भय के निम्नलिखित कारण हैं-.
(i) व्यक्तिगत अप्रिय अनुभूतियाँ - प्राणी की व्यक्तिगत अप्रिय अनुभूतियाँ उसमें भय संवेग की उत्पत्ति करती हैं। जैसे आग से जल जाने पर व्यक्ति आग से डरने लगता है, डाक्टर सुई लगा देता है तो डाक्टर से डरने लगता है। स्कूल में यदि शिक्षक कठोर अनुशासन में रखते हैं तो स्कूल के नाम से डरने लगता है। अतः व्यक्तिगत अप्रिय अनुभवों से भय की उत्पत्ति होती है।
(ii) अनुकरण - जब बच्चे अपने माता-पिता तथा आस-पास रहने वाले अन्य व्यक्तियों को किसी विशेष वस्तु से डरने देखते हैं तो वे भी उन्हीं से डरने लगते हैं।
(iii) अतिरिक्त भय सम्बद्धता - जब किसी वस्तु परिस्थिति या जीव के साथ भयानक ध्वनि उत्पन्न की जाती है तो बालक उस वस्तु परिस्थिति या जीव से डरने लगता है। जैसे किसी जानवर अँधेरे स्थान या व्यक्ति के साथ भयानक ध्वनि उत्पन्न करके उसे बच्चे के सामने लाया जाता है तो वह भयानक ध्वनि और वस्तु का परस्पर सम्बन्ध जोड़ लेता है और डरने, लगता है।
उपर्युक्त तीन प्रमुख कारणों के अतिरिक्त और भी कई कारण हैं जो बालकों में भय की उत्पत्ति करते हैं -
1. बालकों में भय अप्रिय प्रसंगों से भी उत्पन्न होता है। अप्रिय प्रसंगों से तात्पर्य है बालक की किसी परिस्थिति या क्रिया या वस्तु विशेष को पसन्द न करना। जैसे कुछ बालक नहाने या स्कूल जाने से डरते हैं। अतः जैसे ही उन्हें स्कूल जाने या नहाने के लिए कहा जाता है वे भयभीत हो जाते हैं।
2. कठोर अनुशासन बालकों में भय उत्पन्न करता है। यदि परिवार या स्कूल में बालकों को कठोर अनुशासन में रखा जाता है तो उनमें असुरक्षा की भावना विकसित होती है। यह असुरक्षा की भावना भय उत्पन्न करती है।
3. बालकों की दुःखद अनुभूतियाँ उनमें भय की उत्पत्ति करती है। यदि बालक सीढ़ी से गिर जाता है तो सीढ़ी पर चढने में डरता है।
4. भूख, थकान तथा शारीरिक अस्वस्थता बालकों में भय उत्पन्न करती है।
5. प्रिय वस्तु का बिछुड़ना बालकों में भय उत्पन्न करता है।
6. बड़े बच्चों का भय काल्पनिक होता है। वे मृत्यु, भूत-प्रेत, काल्पनिक वस्तुओं आदि से डरते हैं।
7. बड़े बच्चों का जन्म क्रम भी भय संवेग को प्रभावित करता है। ऐसा देखा गया है कि पहले जन्मे बच्चे को अन्य बच्चों की तुलना में अधिक डर लगता है।
8. बालकों में असुरक्षा की भावना भय उत्पन्न करती है। जो बालक स्वयं किसी कारण से असुरक्षित महसूस करते हैं उनमें भय की भावना अधिक होती है।
9. उपर्युक्त सभी कारणों के अतिरिक्त बालक जानवरों, अँधेरे स्थान, ऊँचे स्थान, अनजान व्यक्ति, वस्तु और परिस्थिति, तीव्र ध्वनि आदि से डरते हैं।
10. सामाजिक तिरस्कार, प्रतिष्ठा हानि की भावना तथा दण्ड भी भय की उत्पत्ति में सहायक होता है।
भय संवेग की प्रत्येक अवस्था में पाया जाता है केवल अन्तर इतना है कि आयु वृद्धि के साथ-साथ इनके स्वरूप, तीव्रता तथा प्रदर्शन में अन्तर आता जाता है। बचपनावस्था पूर्व बाल्यावस्था तथा बाल्यावस्था तीनों ही अवस्थाओं में भय संवेग में बड़ी भिन्नता होती है। बचपनावस्था में अधिकांशतः बालक तीव्र ध्वनि से डरते हैं। इसके विपरीत बाल्यावस्था में वे जानवरों, अँधेरे स्थान तथा अकेलेपन तथा अपरिचित व्यक्तियों से डरते हैं परन्तु उत्तरबाल्यावस्था में बालकों का भय काल्पनिक वस्तुओं से सम्बन्धित हो जाता है जैसे वे भूत-प्रेत, मुर्दा तथा काल्पनिक वस्तुओं से अधिक डरने लगते हैं।
भय के स्वरूप और तीव्रता में भी आयु के अनुसार अन्तर पाया जाता है। आयु बढ़ने के साथ-साथ की तीव्रता में कमी आती जाती है। छोटे बालकों की तुलना में बड़े बालक शीघ्रता से रोते-चिल्लाते और भागते नहीं हैं।
जिन बालकों का सामाजिक समायोजन भली प्रकार नहीं हो पाता है वे बालक भी सामाजिक असुरक्षा के कारण भयभीत रहते हैं। इसके अतिरिक्त आत्म-विश्वासी और आत्म-निर्भर बालकों को भय कम होता है। दूसरे पर आश्रित रहने वाले बालक अधिक भयभीत रहते हैं। तीव्र बुद्धि बालक मन्दबुद्धि बालकों की तुलना में कम डरता है क्योंकि तीव्र बुद्धि वाला बालक वातावरण को शीघ्रता से समझकर सही मूल्याँकन कर लेता है।
भय संवेग की उत्पत्ति में यौन विभेद भी रहता है। ऐसा देखा गया है कि बालकों की तुलना में बालिकाएँ अधिक भयभीत रहती हैं।
भय के निवारण एवं नियन्त्रण के उपाय
1. बालक को भयामय स्थिति से दूर रखना चाहिए।
2. बालक जिस परिस्थिति या वस्तु से डरता है उस स्थिति में बालक को अकेले न छोड़ें। जैसे बालक एकान्त या अंधेरे से डरता है तो उसे अकेले या अंधेरे स्थान में न छोड़ें।
3. जिस वस्तु व्यक्ति या परिस्थिति से बालक डरता है तो उस बालक के सामने सुखद व रूचिकर रूप में बार-बार प्रस्तुत करना चाहिए। जिससे बालक उसके वास्तविक स्वरूप से परिचित हो जाये जैसे बालक बिल्ली या कुत्ते से डरता है तो माता-पिता को चाहिए कि वह कुत्ते-बिल्ली को अपनी गोद में बैठाकर धीरे-धीरे बालक के समीप लायें। ऐसा कई बार करने से बालक व्यक्तिगत अनुभव प्राप्त करेगा और उसका भय दूर हो जायेगा।
4. बालक को अनावश्यक रूप से भयभीत नहीं करना चाहिए।
5. बालक पर कठोर अनुशासन नहीं लगाना चाहिए क्योंकि कठोर अनुशासन से असुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है और यह भावना भय की उत्पत्ति करती है।
6. बच्चों को भयामय कहानियाँ न सुनायें बल्कि वीरतापूर्वक कहानियाँ सुनाकर उनके आत्मविश्वास में वृद्धि करें।
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